भजनमाळा ][ ४५
[४] कैसे केवल ज्ञान उपायो
अंतराय कैसे किये निर्मूल,
सुरनर सेवे मुनि चर्ण तुमारे
तो भी नहीं प्रभु तुमकुं गरूर....किसविध.
[५] करत आश अर दास नैन सुख
कीजे यह मोहे दान जरूर,
जनम जनम पद पंकज सेवुं
और न चित्त कछु चाह हजूर....किसविध.
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श्री जिनेन्द्र-स्तवन
(तुमसे लागी प्रीतः प्रभुजी)
तुमसे लागे नैन प्रभुजी...तुमसे लागे नैन...
सुनकर सुयश सुखद शिवदानी, नाम तुम्हारी श्री जिनवाणी,
आन पडे है चरन शरणमें भवभ्रमसे बेचेन प्रभुजी. १
सहज स्वभाव भाव निज प्रगटे, क्रूर कुभाव स्वयं सब विघटे,
ज्ञानानंद दिवाकर लखकर बीत गई दुःख रैन प्रभुजी. २
तुम समान नाहीं जगमांही, कहै जिसे प्रभु लख प्रभुताहीं,
तीनलोक सिरमोर धन्य है तुम गुणमणि सुख दैन प्रभुजी. ३
ज्ञाताद्रष्टा है अविनाशी, अतुल वीर्य बल सुखकी राशी,
निज पदके सौभाग्य सखा हो कारण तुम जिन वैन प्रभुजी.४
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