४८ ][ श्री जिनेन्द्र
प्रभुजी मेरे बोलो....
बोलो...
बोलो...बोलोजी....प्रभुजी मेरे बोलो...प्रभुजी मेरे बोलो....
बोलो....बोलो, बोलो....बोलो....प्रभुजी मेरे बोलो...... – हां बोलो.....
मैं तिहारा...तुम मेरे....बोलो, बोलो बोलो जी....
प्रभुजी मेरे बोलो
– हां....हां बोलो....
ढील किये कुछ काम न आये
भटक फिरे दरशन नहि पाये...दरशन...नहि पाये....
दरशन नहि पाये....
नैनांकी ओटमें हे प्रभु समाये,
अपनी शरन हमें लेलो...लेलो....लेलो....प्रभुजी.
प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी बोलो!
चारों ओर मेरे घोर अंधेरा,
तेरे बिना प्रभु कोई न मेरा...प्रभु कोई न मेरा....
प्रभु कोई न मेरा....
ये अंखिय मोरी हुई अंधियारी,
मनकी अंखिया खोलो...खोलो...खोलो...प्रभुजी.
प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी मेरे बोलो, प्रभुजी मेरे बोलो.
✽