५० ][ श्री जिनेन्द्र
त्रिशला उर अवतार लिया प्रभु सुरनर हर्षाये,
पन्द्रह मास रतन कुंडलपुर धनपति वर्षाये. २
शुक्ल त्रयोदशी चैत्र मासकी आनंद करतारी,
राय सिद्धारथ घर जन्मोत्सव ठाड रचे भारी. ३
तीस वर्ष लौ रहे महलमें बाल ब्रह्मचारी,
राज त्याग कर यौवन में ही मुनिदीक्षा धारी. ४
द्वादश वर्ष किया तप दुर्धर विधि चकचूर किया,
झलके लोकालोक ज्ञानमें सुख भरपूर लिया. ५
कार्तिक श्याम अमावस के दिन प्रातः मोक्ष चले,
पूर्व दिवाली चला तभी से घर घर दीप जले. ६
वीतराग सर्वज्ञ हितैषी शिव मग परकाशी,
हरि हर ब्रह्मा नाथ तूंही हो जय जय अविनाशी. ७
दीन दयाला जगप्रतिपाला सुर नर नाथ जपैं,
सुमरत विघन टरें इक छिनमें पातक दूर भजैं. ८
चोर भील जैसे भी उबारे भव दुःख हरण तूंही,
पतित जान ‘शिवराम’ उबारो हे जिन शरन तूंही. ९
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