५४ ][ श्री जिनेन्द्र
प्रभु! तेरे भक्त पुकारत हैं तेरे नाम को हरदम रटते हैं,
तुम बालक नित्य तरसते हैं प्रभु आपके दर्शन पानेको. ६
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श्री विदेहीनाथ – स्तवन
(रागः गझल जेवो)
विदेहीनाथ कहोने अमी द्रष्टि क्यारे करशो?
डगमगती मेरी नैया भव पार क्यारे करशो?
विदेहीनाथ कहोने. १
शासन धर्म वृद्धि विदेहमां छे भारी,
भरते पधारी प्रभुजी दरिशन क्यारे देशो.
विदेहीनाथ कहोने. २
धर्म स्तंभ स्थपाया सुवर्णमां छवाया,
गंधकुटि पर बिराजी पावन क्यारे करशो.
विदेहीनाथ कहोने. ३
तारा चरण पासे लागी रह्युं छे हैयुं,
वाणी सुणावी अमने एकतान क्यारे करशो.
विदेहीनाथ कहोने. ४
मन लाग्युं तारी पासे काया रही छे दूरे,
करुणा करीने प्रभुजी तुम पास क्यारे लेशो.
विदेहीनाथ कहोने. ५