Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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५६ ][ श्री जिनेन्द्र
[२]
(त्यार पछी आगळ वधतां वधतां अंतिम भवमां)
(प्रभु) स्वर्गपुरी से आये....त्रिशला मात के प्यारे.
वैराग्य को पाय, मुनिपद धार, चले बन मांही.
शुकलध्यान कर बढे, श्रेणी पर चढे, कर्म फूंक दइ सब.
ज्ञान उपाई....ज्ञान उपाई....ज्ञान उपाई............
विपुलाचल के शिखर उनकी, याद दिलाते हैं....हम.
ध्वनि दिव्य खीरे, गौतम झीले, झील के ज्ञान प्रकाशे.
पावापुर पधारें; (प्रभु) मुक्ति सिधारें, सिद्धालय जा के बिराजें.
ऐसे वीर हृदयमें मेरे...मेरे हीय प्रभु ही भासें...!
क्या बिना प्रभु के सेवक सुखी कहीं देखे??
कहां वह प्रभु दरबार? कहां जिनजी कहां जिनजी!!
कहां जिनजी!!
वीर प्रभुको कर याद आज हम, शिर झुकाते हैं...हम.
श्री सीमंधार जिनभजन
(मैं वीस जिनवरोंके चित्तमें लगाकर डोलुं रे)
मैं जिनवर प्रभुकी जय जय जय जय बोलुं रे.
मैं कदम कदम पर अपने प्रभुको ध्यावुं रे.