भजनमाळा ][ ५९
प्रभुके पद मम हृदयांकित हो,
गुन गाउं रटुं परमातम को. ५
कैसे कहूं प्रभु महिमा तोरी,
थक जाय विकल बुद्धि मोरी;
भवरोग के दोष मिटायक हो,
वर शांति जिनेश सहायक हो. ६
जिनगुण संपत्त वर द्यो जिनजी,
सुनिजो विनति सीमंधर जिनजी;
कृतकृत्य सुबोधि समाधि दीजो,
प्रभु भक्ति सदा जयवंत हजो. ७
जिन भजके भवका पार लहूं;
प्रभु भजके भवका पार लहूं;
गुरु भजके भवका पार लहूं;
बस! एक यही मन आश धरूं. ८
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श्री जिनेन्द्रदेवने विनंति
(अहो....सीमंधरनाथ, ज्ञायक अंतरयामी – ए राग)
अहो जगतगुरु एक सुनियो अरज हमारी;
तुम हो दीनदयाळ मैं दुखिया संसारी. १
इस भव वनमें बादि काल अनादि गमायो;
भ्रम्यो चहुंगति मांही सुख नहि दुःख बहु पायो. २