भजनमाळा ][ ६१
श्री वीर जिन स्तवन
वीर तुम्हारी छबि मन भाये...निरखत नैनां थक थक जाये.
सुरपतिने दर्शन करने को सहस्र नेत्र बनाये...
तेरी सूरत मेरी आंखों में बसी रहती है,
याद हर वख्त तेरी दिलमें लगी रहती है;
जीमें आता है कि होकर मैं तेरा पास रहूं,
सर झुका के फक्त मुंहसे यही बात कहूं...वीर. १
आ के दुनियां में आपने बडा उपकार किया,
दे के उपदेश कई जीवों का उद्धार किया;
जिसने आ के तेरे कदमों में झुकाया सर को,
फिर कोई चाह न बाकी रही उस जीव को;
इतना कहना था कि पंकज पै दया हो जावे...वीर. २
हिन्द में बहाईथी उपदेश की धारा अथा,
वह धर्म सुनने भव्य को होतीथी व्यथा,
उनकी व्यथा मिटानेको संदेश तेरा सुनाने को;
गुरु क्हान आये भरतमें आधार भवि जीवन को,
साक्षात् करदी तेरी छबि प्रभु भव्य जीव के नेत्र को....वीर. ३
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