६२ ][ श्री जिनेन्द्र
श्री जिनेन्द्र भजन
हो के कर्मोंसे तंग, वीर तेरी शरण, आज आना पडा.
मैं बिन ज्ञान के जगमें भ्रमता फिरा...स्वामी.
सतगुरु की नहीं सेवा कीनी जरा,
कषायमें रम गया, धर्मसे चूक गया, पछताना पडा. १
पुण्य पापकी चक्कीमें पिसता रहा....स्वामी.
मिथ्या मत में पडा वक्त खोता रहा.
झूठा अभिमान कर, रत्नत्रय तजकर, दुःख उठाना पडा. २
करुणा ऐसी करो कर्मबंधन कटे....स्वामी.
शुद्ध स्वरूप मिले सब कषाय कटे,
मुक्ति पाने को ही, तेरे चरणोंमें ही, चित्त लगाना पडा. ३
आया जो भी तुम्हारे दरबारमें....स्वामी.
वाणी सुन हो गया मुग्ध एक बारमें.
पंकज कर जोडकर, मनका भ्रम छोडकर, शिर झुकाना पडा. ४
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श्री जिनेन्द्र भजन
मैं तेरा हूं, मैं तेरा हूं...पा दरशन तेरा हरषाया हूं....!
मझधार में शुभ नांव यही, परवार यही,
भव तिरनेका उपचार यही (२)