Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७४ ][ श्री जिनेन्द्र
मिथ्या मोह अरू भ्रम छोडें,
वस्तु स्वरूप धरम मन जोडें;
अविचल निधि पाने को दौडें....समवसरण प्रभुकी. २
प्रभु वाणी सुण ज्ञान जगायें,
निज आतम अनुभवमें लायें;
सिद्धासन फिर हम सब पावें...पथ पर चल प्रभुकी. ३
मुश्किल विदेह क्षेत्रका जाना,
ठाठ सोनगढ यहीं सुहाना;
कहानगुरु का जगां ठिकाना...समवसरण प्रभुकी. ४
प्रभुदर्शन सौभाग्य सु पाकर,
जीवन सफल हुओ यहां आकर;
करें सेवना सद्गुण गाकर....सीमंधर प्रभुकी. ५
श्री जिनेन्द्र पूजन भावना
कब ऐसा अवसर पाउं, भला कब पूजा रचाउं....
रतन जडित सुवर्ण की झारी, गंगाजल भरवाउं,
केसर अगर कपूर घिसाउं, तंदुल धवल धुवाऊं.
माल पुष्पन की चढाउं....कब०
षट रस व्यंजन तुरत बना के, अष्टक थार भराउं,
दीपकज्योति उतारुं आरति, धूप की धूम्र ऊडाउं,
श्रीफळ भेट चढाउं....कब०