भजनमाळा ][ ७५
पाठ पढूं और पूजा रचाउं, लेकर अर्घ बनाउं,
शांत छबी जिनराज रूप लख, हर्ष हर्ष गुण गाउं,
— करम का योग मिटाउं...कब० ३
बाजत ताल मृदंग वांसुरी, लेकर बीन बजाउं,
नाचत चंद्र प्रभु पद आगे, बेर बेर शिर नाउं,
— निछावर दर्शन पाउं...कब० ४
या विधि पूजन मंगल करके, हर्ष हर्ष गुण गाउं,
सेवक की प्रभु अरज यही है, चरणकमल शिर नाउं,
— जिससे मैं तिर जाउं....कब० ५
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श्री जिनराज - भजन
(गझल)
तिहारे ध्यानकी मूरत अजब छबिको दिखाती है,
विषयकी वासना तजकर निजातम लौ लगाती है. (टेक)
तेरे दर्शन से हे स्वामी, लखा है रूप मैं मेरा,
तजुं कब राग तन धन का ये सब मेरे विजाती है....१
जगत के देव सब देखें कोई रागी कोई द्वैषी,
किसी के हाथ आयुध है किसी को नार भाती है....२
जगत के देव हटग्राही कुनय के पक्षपाती हैं,
तूंही सुनय का है वैत्ता वचन तेरे अघाती हैं...३