७६ ][ श्री जिनेन्द्र
मुझे इच्छा नहीं जगकी, यही है चाह स्वामीजी,
जपुं तुज नामकी माला जु मेरे काम आती है...४
तुम्हारी छबि निरख स्वामी निजातम लौ लगी मेरे,
यही लौ पर कर देगी जो भक्तों को सुहाती है...५
✽
श्री ´षभ जिन – भजन
(म्हारा नेम पिया गिरनारी चाल्या....)
म्हारा ॠषभ जिनेश्वर नैया म्हारी, भवसे पार लगाजो.
खेवट बनकर शीघ्र खबर ल्यो, अब मत देर लगाजो. टेक
इस अपार भवसिंधु को तिरना चाहुं और,
नैया म्हारी झरझरी, पवन चले झकझोर,
म्हारी नैया को इस फंदासूं प्रभु आकर थे ही छुडाजो...म्हा.१
क्रोध मान मद लोभ ये सबही को कर दूर,
भव सागर को तीरतें तुमही हो मम मित्र,
ओ हितकारी भगवन म्हारो धन चारित्र बचाजो...म्हा. २
सब भक्तों की टेर सुन, राखी छो थे लाज,
आयो हूं अब शरणमें सारो म्हारो काज,
सकल तिमिर को दूर भगाकर ज्ञान को दीप जगाजो...म्हा. ३
✽