भजनमाळा ][ ७७
श्री जिनेन्द्र – स्तवन
(गझल)
प्रभुजी आप बिन मेरे अंधेरा ही अंधेरा था,
मुसीबतमें न कोई था सहारा एक तेरा था...
उदय अब पुण्य का आया दरश मैं नाथका पाया,
प्रभु को देखकर हुआ प्रसन्न मन आज मेरा है...
इसी चक्कर में दुनियां के सहे दुःख लाख चौरासी,
नहीं क्षण एक भी मुझको मिला था सुख आतमका...
प्रभु अब दर्श दो साक्षात् मुझे नहीं चेन पडता है,
मिटा आवागमन मेरा तुझे मैं टेर करता हूं...
प्रभु जब आप हिरदेमें झूले मन मेरा आनंदमें,
सहारा तेरा है भारी प्रभुजी मेरे जीवनमें...
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श्री जिनराज – स्तुति
(भव भव के बंधन तोड प्रभु...)
आया हुं दुःखसे मैं हारा प्रभु,
अब आप बचाने वाले हैं...
दुःख पाउं यहां तुम चैन करो,
यह काम न होने वाले हैं....