८४ ][ श्री जिनेन्द्र
भोग भूजंग भयंकर भव भव भंजन योग चितारे,
स्हेसावन जा कर कचलोचन,
भूषन वसन उतारे...सखी मन. ३
पल पल पलकें पिय प्यारे पर नैनां पलक पसारे,
यह सौभाग्य सफल हो जबही नित ऊठ नेम नीहारे. सखी. ४
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भजन
(राग...होरी)
मेरा मन ऐसी खेलत होरी...मेरा मन....
मन मिरदंग साज करी व्यारी, तनको तंबूर बनोरी,
सुमतिमुरंग सारंगी बजाइ, ताल दोउ कर जोरी,
— राग पाचो पद कों....री.... १
समकितरूप नीर भर झारी, करुणा केशर घोरी,
ज्ञानमयी लेकर पीचकारी, दोउ करमांही सम्होरी,
— इन्द्रि पाचों सखी वोरी... २
चतुर दान को है गुलाब सो भरी भरी मूठी चलोरी,
तपमें वांकी भरी निज झोरी, यशको अबील ऊडोरी,
— रंग जिनधाम मचोरी... ३
‘दौल’ बाल खेले अब होरी, भव भव दुःख टलोरी,
शरना ले एक श्री जिन कोरी, जगमें लाज हो तारी,
— मिले फगुआ शिवगौरी... ४