भजनमाळा ][ ८५
श्री नेमिनाथ प्रभुनो प्रसंग
(लाल कैसे जावोगे, अशरन शरन कृपाल)
इक दिन सरस वसंत समय में, केशव की सब नारी...
प्रभु प्रदक्षणा रूप खडी है कहत नेमी पर वारी...१
कुंकुम लै मुख मलते रूकिमणी, रंग छिडकत गांधारी....
सत्यभामा प्रभु ओर जोर कर छौरत है पीचकारी...२
‘व्याह कबूल करो तो छूटो’ इतनी अरज हमारी...
‘ओंकार’ कह कर प्रभु १मुलके छांड दियो जगतारी...३
पुलकित वदन मदन पित भामिनी निज निज सदन सिधारी..
‘दौलत’ जादव वंश व्योम शशी ज्यों जगत हितकारी...४
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श्री सीमंधार जिन स्तवन
जय जय जय श्री जिनवर प्यारे....
जय जय जय भवसागर सों तारण हारे...!
जनम जनम यों भटक भटक दारूण दुःख मैंने पाये,
पाया तारण तरण तुम्हीं को, बैठा आश लगाये...
— तुम बिन कौन उगारे....१
भव सागर की भंवरोंसे यह थकी हुई मोरी नैया,
शरण तुम्हारी आया हूं प्रभु पार लगे मोरी नैया....
— पार लगादो तारणहारे....२
१मुलके = हसे