८८ ][ श्री जिनेन्द्र
[३]
बाल ब्रह्म हो काम को तरुण अवस्था जीत,
नग्न दिगंबर मुनि भये भोगनतें भयभीत;
लगा आतमका ध्यान, स्वपर वस्तुका ज्ञान,
दिया जगका महान, हो को चिद्रूप...झूलाया...अमर...
[४]
धन्यजीवन प्रभु वीर का धन्य धर्म गुणगान,
जाति विरोधीने किया एक साथ श्रुत-पान;
दिया आतमका ज्ञान, जैन धर्मका भान,
गाया गणधरने गान, हुआ जयजय....प्रभुका...अमर....
[५]
दूर्धर तप कर जिन दिये अष्ट कर्म को नष्ट,
तीन भवन पति धन वरी मुक्ति रमा उत्कृष्ट;
इन्द्र आदिक स्वमेव, नत मस्तक हो देव,
करी चरणों की सेव, गाते सौभाग जय जिन...अमर...
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जिनेन्द्र जन्माभिषेक
(तालः कहरवा)
कहां सोवे महारानी लल्ला गोदी लेले रे...
गोदी लेले...गोदी लेले गोदी लेले रे....कहां सोवे०
नींद सफल भई मोरा देवी माई, भरवा लेरी गोद...लल्ला गोदी. १