स्तवनमाळा ][ १०७
तीनलोकपति दुःख हरे नहि, अनहोनी कब होवे,
बडा ललचायाजी, बडा ललचायाजी.
कर्मोने लाला नया दर्श दिखलाया — १.
दीनानाथ दया के सागर, झोली पलक पसारे,
दर्शनको सौभाग्य खडा है, कबसे तोरे द्वारे;
जरा अपनाओजी, जरा अपनाओजी;
तेरे पे आश धरे हिये उमगाया — २.
श्री जिन – स्तवन
जिनवाणी माता दर्शन की बलिहारियां....टेक..
प्रथम देव अरिहन्त मनाऊँ, गणधरजी को ध्याऊं.
कुन्दकुन्द आचारज स्वामी, नितप्रति शीश नवाऊं....जिन०
योनि लाख चौरासी मांही, घोर महादुःख पायो;
तेरी महिमा सुनकर माता! शरण तिहारी आयो....जिन०
जाने थारो शरणो लीनों, अष्ट कर्म क्षय कीनों.
जामन – मरन मेटके माता! मोक्ष महापद दीनो....जिन०
वार-वार मैं विनवुं माता, महरजु मो पर कीजे;
पार्श्वदास की अरज यही है, चरण शरण मोही दीजे....जिन०
श्री जिन – स्तवन
नाचो (२) प्यारे मनके मोर
जागे (२) हैं भाग्य हमारे,
आज प्रभु पाये हैं दरश तुम्हारे.
चारों तरफ से हृदयमें आज
आती अवाज हे जिनराज