१०८ ][ श्री जिनेन्द्र
जय जयही जय जयही शब्द उचारे......जागे.
तुमसे लागी लगन प्रभु दीजे शरण
हम जीवनको अपने सुधारें
कार्य सफल हों सारे हमारे......जागे.
दर्शनको पाके पाप नशाने
आये हैं स्वामी पुण्य कमाने
वृद्धि हो सिद्धि हो जो भी विचारे.......जागे.
श्री जिन – स्तवन
(अनमोल घडी – आजा आजा मेरी बरबाद मोहोबतके)
आया, आया, आया तेरे दरबारमें त्रिशलाके दुलारे,
अब तो लगा मझधार से यह नाव किनारे;
अथाह संसारसागरमें फंसी है नाव यह मेरी
फंसी है नाव यह मेरी
ताकत नहीं है और जो पतवार संभारे, अब तो, १.
सदा तूफान कर्मोंको नचाता नाच है भारी,
नचाता नाच है भारी.
सहे दुःख लाख चौरासी नहीं वो जाते उचारे, अब तो, २.
पतितपावन तरणतारण, तुम्हीं हो दीन दुःखभंजन,
तुम्हीं हो दीन दुःखभंजन.
बिगडी हजारोंकी बनी है तेरे सहारे, अब तो, ३.
तेरे दरबारमें आकर न खाली एक भी लौटा,
न खाली एक भी लौटा,
मनोरथ पूर दे ‘सौभाग्य’ देता धोक तुम्हारे, अब तो. ४.