स्तवनमाळा ][ १०९
श्री जिन – स्तवन
(सावनके बादलो)
चरणों का दास हो, तुमसे लगाके लौ
तकसीर की क्षमा का इच्छुक हूं दान दो
भव रोग भगाओ, मन स्वच्छ बनाओ.
दान सुमति का दिलाके, कुमति को हटाओ....चरणों. १.
जिस दिनसे हुए संग हूं, कर्मोने किया तंग है
भवभवमें जो भटका हूं, यह दुःख मिटाओ, चरणों....२
परभावोने मुझे आके, फांसा है सदा रंग छाके,
‘सौभाग्य बढे’ जबही, जिनपद समान हो. चरणों....३.
श्री जिन – स्तवन
म्हारा पद्मप्रभुजीकी सुंदर मूरत म्हारे मन भाईजी,
कारतकी शुक्ला तेरशके दिने, प्रगटे त्रिभुवन राईजी
म्हारे मन भाईजी, म्हारा पद्म.
रत्नजडित सिंहासन सोहे, जहां पर आय विराजाजी
तिन छत्र थाका सिर सोहे, चोसठ चंवर ढरायेजी
म्हारे मन भाईजी.
अष्ट द्रव्य ले थाल सजाकर पूजा भाव रचायाजी
सोमा सतीने तुमको ध्याया, नागका हार बतायाजी
म्हारे मन भाईजी.
समवसरणमें जो कोई आया, उसका परण निभायाजी