११० ][ श्री जिनेन्द्र
जो कोई अंधा लूला आया, उसका रोग मिटायाजी
म्हारे मन भाईजी.
फैली प्रभुकी महिमा भारी, आते नित नर – नारीजी
ठाडो सेवक अर्ज करे छे, जामन मरण मिटायोजी
म्हारे मन भाईजी.
श्री जिन – स्तवन
( कित गये हमारे सैंया अजहुं न आये)
पाये पायेजी वीर के दरशन जिया हरषाये,
सब टले हमारे पातक पुण्य कमाये,
भूले भूले अबलो भटके, अब ना भटका जाये,
शिव सुखदानी तुमको पाकर, कैसे भूला जाये? १
भवदधि तारण तरण जिनेश्वर, सब ग्रंथनमें गाये,
फिर भक्तोंकी नाव भंवर बिच, कैसे गोते खाये. २
विरद निहारो संकट टारो, राखो चरण निभाये,
सुख ‘सौभाग्य’ बढे भारतका घर घर मंगल गाये. ३
श्री जिन – स्तवन
(बादर दलसा)
प्रभु हम सबका एक, तूही है तारणहारा रे,
तुमको भूला फिरा वोही नर मारा मारा रे.
बडा पुण्य अवसर यह आया,
आज तुम्हारा दरशन पाया,
फूला मन यह हुआ सफल मेरा जीव सारा रे....१