स्तवनमाळा ][ ११३
आज दरश कर तन-मन फूला,
निजानंद पथ पाया भूला,
आत्मबोधका झूला झूला,
बना ‘सौभाग्य’ धर्म अनुकूला,
पाई निधि कल्याण की.....५
श्री जिन – स्तवन
तेरे चरणोंपे बली बली जाउं,
परम पद पाउं, पाउं, यही भा रहा है.
मेरे नयनों में तेरी छबी छाई रे,
माया दुनियाकी सारी भुलाई है;
तुझे मनकी (२) कुटरीयामें लावुं
लावुं, गुण गावुं, गावुं, यही भा रहा है.
आज जीवनमें खुशियां अपार है;
पाया जीवनमें जीवनआधार है;
तेरे चरणोंमें मैं चित्त लावुं, लावुं,
सुरस चाहुं, चाहुं, यही भा रहा है.
मेरे कर्मोंकी टूटेंगी लडीयां,
आई ‘सौभाग्य’ से आज ये घडीया;
भावभक्तिसे मैं शिर नाउं, नाउं,
गुण गाउं, गाउं, यही भा रहा है.
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