११६ ][ श्री जिनेन्द्र
वस्तुस्वरूप चराचर तुमने जग को दर्शाया,
निज – पर भेद प्रकट कर पावन भविमन हर्षाया. ॐ
भाव भक्ति से करें आरती झूक – झूक सिर नावें,
तुमसम पद ‘‘सौभाग्य’’ मिले प्रभु भव भव यह चावें. ॐ
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श्री जिन – स्तवन
(मैं उनकी बन जाउं रे)
कलश देखने आया जी, मैं कलश देखने आया,
उमग उमग जब सुरनर आते, मैं भी मन मन ललचाया.
हां मैं भी मन ललचाया रे, कलश देखने आया. टेक.
क्षीर सिंधु से कलसे भरकर, सुरपति लाया, सुरपति लाया,
सुरपति लाया हरष हरष कर,
सब जय जय के मधुर नाद से, येह ब्रह्मांड गुंजाया,
हां यह ब्रह्मांड गुंजाया रे. कलश देखने. १.
इन्द्र सचि मिल तांडव करती, मंगल मुखिया मंगल मुखिया,
मंगल मुखिया स्वर लय भरती,
धन्य धन्य ‘‘सौभाग्य’’ कलश का बडे भाग्य से पाया,
हां बडे भाग्य से पाया रे. कलश देखने. २.
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