स्तवनमाळा ][ ११७
श्री जिन – स्तवन
(रूम झुम बरसे बादरवा मस्त हुआ मन मेरा)
पल पल निरखे नैनववा, मस्त हुई छबी तेरी,
प्रभु पद्म प्यारे प्यारे. टेक.
एसा रूप अनूप आपका है, प्रभु है,
सुरपति भी कर निरखे लोचन सहस प्रभु, सहस प्रभु,
तो भी तृप्ति न थाये रे, महिमा अगम अगोचर,
कई कथ हारे, हारे, कई कथ हारे. प्रभु पद्म प्यारे. १.
तव पदपंकज की सौरभ दुःख हर रही, हर रही,
निजानन्द रसलीन आतमा कर रही, कर रही,
स्वपर भेद सब प्रकटा रे, ज्ञान चराचर झलके,
शिवसुखवारे, वारे शिवसुखवारे. प्रभु पद्म प्यारे. २.
भव भव तव भक्ति की उर में, लगन रहे, लगन रहे,
पापों से हो दूर, पुण्य मन मगन रहे, मगन रहे,
यह ‘सौभाग्य’ दिपाऊं रे, धर्म अहिंसा जग जन,
सभी उर धारे, धारे, सभी उर धारे. प्रभु पद्म प्यारे. ३
श्री जिन – स्तवन
(म्हारा छैल भंवर कसूंबो पीवे)
म्हारा नेम पिया गिरनारी चाल्या, मत कोई रोक लगाज्यो
लार लार संयम मैं लेस्युं, मत कोई प्रीत बढाज्यो .टेक.