Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११८ ][ श्री जिनेन्द्र
साजन त्यागो पापयुत, देख जगत व्यवहार,
राज ताज कुल संपदा, मनमें दया विचार;
म्हारा माथा में साथणिया, कोई मत सिंदूर लगाज्यो. .
भोग रोगकी खान है, भोग नरक को द्वार,
जो जीत्यो इह भोग नें, तिर गयो भवदधि पार;
ओ मन भोली अनजान, जोग की रीत निभाज्यो. .
धन्य धन्य जिन जोग ले, द्वादशांग तप धार,
कर्म काट शिवपुर गये, नमों जगत हितकार;
यो नरभव को ‘सौभाग्य’ सजनी तप कर सफळ बनाज्यो. .
श्री जिनस्तवन
(चुप चुप खडे हैं जरूर कोई बात है)
भव भव रुले हैं न पाया कोई पार है,
तेरी ही आधार है, तेरा ही आधार है. टेक.
जीवनकी नाव यह कर्मों के भार से, कर्मों के भार से.
ऊलझी है कीच बीच गतियों की मार से, गतियों की मार से.
रही सही पतिका तूं ही पतवार है. तेरा ही आधार. १.
सीता के शील को तूने दिपाया है, तूने दिपाया है,
सूली से सेठ को आसन बिठाया है, आसन बिठाया है.
खिली खिली कलिसा किया नाग हार है. तेरा ही. २.
महिमा का पार जब सुरनर न पा सके, सुरनर न पा सके,
‘सौभाग्य’ प्रभु गुण तेरे क्या गा सके, तेरे क्या गा सके.
बार बार आपको सादर नमस्कार है. तेरा. ३.