Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२० ][ श्री जिनेन्द्र
श्री जिनेन्द्र-पंचकल्याणक वर्णन
गर्भकल्याणक वर्णन
( दोहा )
वृषभ आदि चौवीस जिन, गर्भकल्याणक सार,
तको कछु वरनन करौं, भक्ति भाव उर धार. १.
( तोरल छंद )
पहिले षट् मास रहे जब ही,
तब इन्द्रसु प्रथम विचार सही;
छह मास सु आयु रही जिनकी,
तुम धनपति जाय करो विधकी. २.
तब आय कुबेर सु नग्रि रची,
कनका रतनामय सोभ मची;
वरषा नृप आंगण में नितही,
अध तीन किरोड सुरत्न लहीं. ३.
तिहिं देखत जीव मिथ्यात गये,
जिन महिमातैं सम्यक्त ठये;
पुनि आइय गर्भ जिसी दिनजी,
तब मात सु स्वप्न लई इमजी. ४.
नगराज वृषभ गजराज लख्यो,
जुगमीन सरोवर सिंधु अख्यो;