स्तवनमाळा ][ १२१
जुगमाल सु कुंभ हरी कमला,
शशि सूर्य धनंजय निर्धुमिला. ५.
हरिपीठ भवन धरणेन्द्र कही,
सुरराज विमान ए सोल कही;
ऊठ मात सु प्रात क्रिया करिकैं,
पतिपैं विरतंत कह्यो निशिकैं. ६.
तब अवधि सु ज्ञान विचार करे,
तुव गर्भ जिनेश्वर आन लहे;
सुन दंपति मोद भरी अति ही,
पुनि आसन कंप भई चव ही. ७.
तब आय सु सप्त समाज लिये,
जिन मात रु तात सनान किये;
पुन पूजि जिनंद सु ध्यान करी,
निज पुण्य उपाय गये सुघरी. ८.
सुर देवि सु सेव करें नितही,
जिन मात रमावन की चित ही;
केई ताल मृदंग सु वीन लिये,
मुरचंग अनेक सु नृत्य किये. ९.
इम षष्ट पचास कुमारि करैं,
अपने अपने कृत चित्त धरैं;
इन आदि अनेक नियोग भई,
कहि कौन शके मैं मंद धिई. १०.