स्तवनमाळा ][ १२३
ऐरावत ही सजयो जगसार हो,
जोजन लाख प्रमाण,
वदन एक शत सोहनो जगसार हो,
वसु वसु दन्त महान,
महानरद प्रति एक सरसो, सरन सो पन बीस ही,
कमलनी कमलनि कमल पच्चीस, कमल दल अठसो सही;
दल दलहिं अपच्छर नृत्य करहिं, सु हाव भाव संगीत ही,
सब भई कोड सु बीस सात, सु लिए ताल अभीत ही. ३.
चढि सुरपति पुर आइयो जगसार हो,
देय प्रदक्षिण तीन,
शचि जाय जाननी ढिगे जगसार हो,
सुख निद्रा तब दीन.
तब दीन बालक मात, ढिग मायामयी पुनि जिन लियो,
तब ल्याय जिनपति देत सुरपति, नमन करि जिन तिन लिये;
देखत तृपत नहीं होत इन्द्र सु सहस्रलोचन तब करी,
ईशान इन्द्र सु छत्र धर शिर चमर जुग उपर ढरी. ४.
जाय सुरेन्द्र गिरेन्द्र पर जगसार हो,
पांडुकशिला विशाल,
शत जोजवन लांबी कही जगसार हो,
अध विष्कुंभ निहार.
निहार ऊंची आठ भाखी अर्द्ध चन्द्राकार ही,
तपैं सिंहासन कमल आसन पूर्व मुख जिन थाप ही;
मेरु उपर रच्यो सुरराज बहु विध कलश सहस्र अठोत्तरे,
पंचम उदधि जल भरे मणिमय ढके कमलनि सोचरे. ५.