४ ][ श्री जिनेन्द्र
भवि तारन पूरण कारण हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. १
समयामृत पूरित देव मही,
पर आकृति मूरति लेश नहीं;
विपरीति विभाव निवारन हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. २
अखिना अभिना अछिना सुपरा,
अभिदा अखिदा अविनाश वरा;
यमजाम जरा दुःख जारन हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. ३
निर आश्रित स्वाश्रित वासित हो,
परकाशित खेद विनाशित हो;
विधि धारन हारन पारन हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. ४
अमुधा अछुधा अद्विधा अविधं,
अकुधा सुसुधा सुबुधा सुसिधं;
विधि पारन जारन हारन हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. ५
शरनं चरनं मरनं वरनं,
करनं लगनं डरनं हरनं;
तरनं भववारिधि तारन हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. ६