स्तवनमाळा ][ ५
भववास परास विनाशन हो,
दुःखराश विनाश हुताशन हो;
निज दासन त्रास निवारन हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. ७
तुम ध्यावत शाश्वत व्याधि दहै,
तुम पूजत ही पद पूजि लहै;
शरणागत संत उभारन हो,
सब सिद्ध नमों सुखकारन हो. ८
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श्री जिन – स्तवन
(पद्धरी छंद)
जय स्वयं शक्ति आधार योग,
जय स्वयं स्वस्थ आनंद भोग;
ज्य स्वपरविकाश अवास भास,
जय स्वयं सिद्ध निजपद निवास. १
जय स्वयं बुद्ध संकल्प टार,
जय स्वयं शुद्ध रागादि जार;
जय स्वयं गुणी आधार धार,
जय स्वयं सुखी अक्षय अपार. २
जय स्वयं चतुष्टय राजमान,
जय स्वयं अनंत सुगुण निधान;