६ ][ श्री जिनेन्द्र
जय स्वयं स्वस्थ सुस्थिर अयोग,
जय स्वयं स्वरूप मनोग योग. ३
जय स्वयं स्वच्छ निज ज्ञान पूर,
जय स्वयं वीर्य रिपु वज्रचूर;
जय महामुनिन आराध्य जान,
जय निपुणमति तत्त्वज्ञ मान. ४
जय संतनि मन आनंदकार,
जय सज्जन चित वल्लभ अपार;
जय सुरगण गावत हर्ष पाय,
जय कवि यश कथनन करि अघाय. ५
तुम महातीर्थ भवि तरण हेत,
तुम महाधर्म उद्धार देत;
तुम महामंत्र विष विघन जार,
अघ रोग रसायन कहो सार. ६
तुम महा शास्त्रकी मूल ज्ञेय,
तुम महा तत्त्व हो उपादेय;
तिहुं लोक महामंगल सुरूप,
लोकत्रय सर्वोत्तम अनूप. ७
तिहुं लोक शरण अघहर महान,
भवि देत परमपद सुखनिधान;
संसार महासागर अथाह,
नित जन्म मरण धाराप्रवाह. ८