स्तवनमाळा ][ १३
श्री जिन – स्तवन
(तर्ज – जब तुम्ही चले परदेश)
जय जय जगतारक देव, करें नित सेव, पदम – जिन तेरी –
अब वेग हरो भव फेरी. टेक
तुम विश्वपूज्य पावन पवित्र, हो स्वार्थहीन जग जीव मित्र.
हो भक्तों के प्रतिपाल करो मत देरी. अब० १
मुनि मानतुंग का कष्ट हरा, पल में सब बंधनमुक्त करा,
रणपाल कुंवर की तुम्ही ने काटी बेरी. अब० २
कपि स्वान सिंह अज बैल अली, तारे जिन तब ली
शरण भली,
यश भरी है अपरंपार कथाएं तेरी. अब० ३
कफ वात पित्त अंतर कुव्याधि, जादू – टोना विषधर विषादि,
तुम नाम मंत्र से भीड भगे भव केरी. अब० ४
अब महर प्रभु इतनी कीजे, निज पुर में निज पद
सम दीजे,
‘‘सौभाग्य’’ बढे, शिवरमा हो पद की चेरी. अब० ५
श्री जिन – स्तवन
(तर्ज – अय चांद ना इतराना)
अय नाथ ना बिसराना, आये हैं तेरी शरण, शरण,
आये हैं तेरी शरण, चरण में अपनाना. टेक०