१६ ][ श्री जिनेन्द्र
श्री जिन – स्तवन
तुमही ने सबको ज्ञान सिखाया, भूले हुओं को राह लगाया;
एक नया उत्साह जगाया, प्रेम बढाया, द्वेष मिटाया;
तुम्हीं हो सुख दातार, स्वामी तुम्हीं हो सुख दातार. १
बेडा बीच भंवर जब आया, हाथ बढाया, पार लगाया,
तुम्हीं हो खेवनहार स्वामी, तुम्हीं हो खेवनहार. २
तुम्हीं को हृदय बीच बिठाऊं, ‘‘वृद्धि’’ पाउं हर्ष मनाऊं,
तुम्हीं हो जगदाधार स्वामी, तुम्हीं हो जगदाधार. ३
श्री जिन – स्तवन
जय जय जय महावीर, जग हितकारी आनंदकारी,
जाउं मैं बलिहारी सूरत पे वारी वारी,
तेरे चरण का स्वामी मैं हूं पुजारी. १
तुमने लाखों ही पापी उबारे,
दीन पशुओं के संकट निवारे;
तेरी महिमा है न्यारी हां न्यारी,
आशा पूरो हमारी हमारी हमारी. २
गणधरों ने यह सूत्रों में गाया,
देव तुजसा ना ‘‘पंकज’’ ने पाया.
तेरे गुण गान गाऊं मैं गाऊं,
लौ तुम्हीं से लगाऊं लगाऊं लगाऊं. ३