Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१८ ][ श्री जिनेन्द्र
कदम कदम पर ज्योति तुम्हारी, अपनी छटा दिखाती है,
अन्धकार विनशाती है बिछुडों को राह लगाती है,
इसकी चमक सूर्यसे ज्यादा, करती मन उजियाली.
भवकी नदिया इस नैया से लाखों भविजन पार लगे,
ओ नैया के खेनेवाले मुझको भी कुछ देओ जगह;
पार बसत है मुक्ति तुम्हारी कठिन ‘‘वृद्धि’’ पथवाली.
श्री जिनस्तवन
(तर्ज सावन के नजारे हैं )
दर्शन का भिखारी हूं अहो प्रभु
नयनों की पलकों की झोली को पसारी है.
भटका हूं कई दर पर पाया न कोई तुझसा,
दातार भला मैंने हृदय में समाई है,
यह ध्यान मगन मूरत, वीतराग सुहाई है.
यह शांति छवी तेरी, लागत अति प्यारी,
मेरे मनको यह भाई है.
मेरी तृपत भई अखियां पाकर प्रभु दर्शन,
कृतकृत्य हुआ भारी.
भरना इस विधि नितही झोली मेरी को,
पुण्य ‘वृद्धि’ करूं स्वामी.