स्तवनमाळा ][ ३१
बार बार प्रभुरूप निरखना, गाय बजाय नृत्य का करना,
मन, भायोजी, हो ‘वृद्धि’ यह शुभ अवसर कभी न भूलाना
देखलो आ, देखलो आ. हो० ३
श्री जिन – स्तवन
(दौड)
सुरग लोकतें चयकर तुम मात गरभमें आये,
इन्द्रादिक सुर नर विद्याधर रोम रोम हरषाये.
षट नव मास रतन नगरीमें तीन काल वरसाये,
सेवत छप्पन कुमारी रे.
बलिहारी तुम्हारी प्यारी रे सुखकारी रे,
बलिहारी तुम्हारी रे. १
मति श्रुत अवधि पुनि दश अतिशय सहित जनम तुम लीनो,
ऐरावत चढ मेरू शिखर पर जाय न्हवन हरि कीनो;
करि शणगार मातको सोंपी भक्ति विषे चित दीनो,
नाचत राचत भारी रे. बलिहारी तु० २
भव तन भोग विरक्त भये अनुप्रेक्षा चित्त विचारी,
लौकांतिक सुर आय प्रशंसे तुमने भले विचारी;
पंच महाव्रत मंडित दीक्षा परम दिगम्बर धारी,
राज काज सब छांडी रे. बलिहारी तु० ३
घाति करम हरि केवल पायो, लोकालोक निहारे,
समवसरण धनपति रचो, पूजनको सर्व पधारे,