Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३२ ][ श्री जिनेन्द्र
आरज खंड विहार करो भविजनको पार उतारे,
दुविध परम विस्तारी रे. बलिहारी तु० ४
और अघाती चार करम तिनको तुमने जब भांजे,
निराकार अविकार निरंजन अजर अमर पद साजे,
तीन लोकके शिखर आप जाय बिराजे,
आवागमन निवारी रे. बलिहारी तु०
चार ज्ञानके धारक गणधर तिनहुं पार न पावें,
इन्द्र चन्द्र धरनेन्द्र सुनी चरणारविंद तुम ध्यावें,
अमुलीक नंद कहे मतिमंद ‘हीराचंद’ कहा लग गुण गावे.
तार तार भतवारी रे. बलिहारी तु०
श्री पंचपरमेÌीस्तवन
(सुनयनानंद छंदकडखो)
इन्द्र धरणेंद्र नरइन्द्र जग ईशके;
होय अनुचर धरैं छत्रत्रय शीशके;
पंचकल्यान लही घातियां जय लये,
गणधरादिक जजे परम हर्षित भये.
ज्ञान दर्शन जुगल ये अनंते महा,
ध्यान वर शुक्ल सो अनंते सुख लहा;
वीर्ज सो अनंत लहते परमदेवजी;
द्यो प्रभू श्रेष्ठ मंगल हमें सेवजी.