स्तवनमाळा ][ ३३
जनम जरा मरण ये प्रबल त्रय नग्र ते,
ध्यान रूपी अग्निबान कर दग्ध ते;
शाश्वता सिद्धपद पाय गन सिद्ध ते,
द्यो हमें पंचमो ज्ञान परिसिद्ध जे. ३
ज्ञान दर्शन तपा वीर्ज चारित्र ये,
पंच आचार के धार आचार्य जे;
येहि पंचाग्निके साधवा ले तपी,
संघ मुनि ता विषे परम नायक जपी. ४
सम्यक्त्व रत्नादि गंभीर गुन धार है,
अंग द्वादश श्रुतिज्ञान – दधि पार है;
सूर होते शिवगरूप लक्ष्मी यदा,
द्यो हमें सरस्वती अंत रहिते सदा. ५
घोर अति रौद्र दुःख थान भयानक दिखैं,
जगतरूपी व जड अरण तिहिके विषैं;
वदन विकराल नख कठिन तीक्षन दिखैं,
पापरूपी इसा सिंह जिहिके विषैं. ६
मुक्तिरूपी सुगम पंथतें भ्रष्ट है,
मोह मिथ्या कुतप सेय अति कष्ट है;
इसे भवि जीव शिवमार्ग परकाशते,
द्यो हमें श्रेष्ठ पाठक पठन पाठ ते. ७
उग्र तप चरनकर अंग शोषित भया,
धर्म अरू शुक्ल जुग ध्यानमांही ठया;