Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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स्तवनमाळा ][ ३५
धर पंच महाव्रत गुण-निधान,
पुनि तीन गुपत त्रय जगतमान.
सोहत शुद्धातम पाप टार,
वर पंच समिति गह निज विचार,
साधत परमातमपद संवेग,
गहि शील ढाल संतोष तेग.
तप कीने नाना विधि अपार,
महिमासमुद्र करुणा भंडार;
व्रत कर सोहत अति दिपतवान,
बहुविधि प्रकार ॠद्धि महान.
उपमा नहिं कोई जिन समान,
भवतारन तरन कहे वखान;
रत्नत्रयनिधि दानी सुसंत,
निज पर हित उपकारी महंत.
वसु करमन जीतन भट सुजान,
त्रिभुवनपति सहित सु चार ज्ञान;
गुणश्रेणीमंडित सुमति भौन,
जिन गुन वरनन बुध धरत कौन.
श्री जिनस्तवन
(छप्पा)
वंदों श्री जिनराय, मन वच काय करोजी;
तुम माता तुम तात, तुम ही परम धनीजी.