मैं तुम कबहुं न दीठ, गद्गद् नैन भरेजी.
भ्रम्यो संसार अनंत, नहीं तुम भेद लह्योजी;
तुमसौं नेह निवार, परसौं नेह कियौजी.
विभाव भाव मंझार, अब उद्धार करोजी;
तुमसों प्रेम करैंय, ते संसार तरैंजी.
तुम विन येते काल, मम सब विफल गयेजी;
तुम वंदे दुख जाय, सबही पाप टरैंजी.
तुम प्रभु दीनदयाल, मम दुख दूर करोजी;
इन्द्रादिक सब देव, ते तुम सेव करैंजी.
जिभ्या सहस्र बनाय, तुम गुन कथन करैंजी;
रूप निहारन काज, नैन हजार रचैंजी.
भाव भक्ति मनलीन, इन्द्रानी नृत्य करैजी;
अंग विचित्र बनाय, थेई थेई तान करैजी.
पुण्य पापका ख्याल, देखो सम्यक्ज्ञानी;
नित्य महोत्सव होत, बाजत तबल निशानी.