३८ ][ श्री जिनेन्द्र
निखिल वस्तुको तत्त्व दिखावै दिनकर जेम उतंग;
जडता ममता हरता देवी करता ज्ञान सुचंग.
सरस्वती जगमाता! तू तो करत सदा शिवसंग. ९
दुर्धर दुर्जय अष्ट मदादिक और कषाय कुरंग;
नादि कालतें भववनमांहीं दुःखित कियो दुरंग.
सरस्वती जगमाता! तू तो करत सदा शिवसंग. १०
श्रद्धा द्रढ युत ज्ञान चरित करि हरिये कुमति कुसंग,
दोष वचन हरि प्रियहित बानी करिये सुमति सुचंग.
सरस्वती जगमाता! तू तो करत सदा शिवसंग. ११
श्री जिन – स्तवन
(भुंजगप्रयात)
गुणावास श्यामा भली जासु माता,
भये पुत्र जाके दिखाये अचंभा;
रहे जासुके द्वार पै देव देवा,
नमों जय हमें दीजिये पादसेवा. १
लखी चाल मैं नाथ तेरी अनूठी,
बिना अस्त्र बांधे करे शत्रु मूठी;
लई ज्य तिहूं लोकमें जीत एवा,
नमों जय हमें दीजिये पादसेवा. २
पडी कंठमें नाथके मुक्ति माला,
बिराजे सदा एक ही रूप शोभा;