Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६२ ][ श्री जिनेन्द्र
भरत क्षेत्र छे अमारो देश रे,
आ सीमंधर सभामां बेसणां रे;
आत्म स्वस्थाने छे अमारो वास रे,
आ अनंत गुणोमां बेसणां रे;
क्यो कुंदकुंददेव केम करी गया विदेह रे,
आ केवा प्रभुने निहाळीया रे;
भक्तिभावे गया अमे विदेह रे,
आ जिनेन्द्र अद्भुत निहाळीया रे;
सीमंधर प्रभुना दिव्यध्वनिना छूट्या नाद रे,
कुंदकुंदे झील्या भावथी रे;
अद्भुत ध्वनि सुणी थया लयलीन रे;
आ वीतराग भावने घुंटीया रे;
वळी फरी आव्या भरतक्षेत्र मोझार रे,
आ समय प्राभृतने गुंथीया रे;
आ भरतक्षेत्रे श्रुतकेवळी कुंदकुंद रे,
महा मुनियोना शिरोमणि रे;
कुंदकुंद प्रभुना केडायत गुरु कहान रे,
आ जगतउद्धारक प्रभु जागीया रे;
सुवर्णपुरी दिसे महाविदेह समान रे,
सीमंधर प्रभुजी पधारीया रे;
तीर्थधाममां वर्ते जय जयकार रे,
आ मंगळ कार्यो दिनदिन थाये रे;
जयवंत वर्ते देव गुरुजी शास्त्र रे,
आ शासन जयवंत वर्ती रह्युं रे.