Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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स्तवनमाळा ][ ६७
बहुत कालके हौ पुनि जरा न देह तिहारी,
ऐसे पुरुष पुरान करहु रक्षा जु हमारी.
परहरिकैं जु अचिंत्य भार जुगको अति भारो,
सो एकाकी भयो वृषभ कीनों निसतारो;
करि न सके जोगीन्द्र स्तवन मैं करिहौं ताको,
भानु प्रकाश न करे दीप तम हरै गुफाको.
स्तवन करनको गर्व तज्यो सक्री बहु ज्ञानी,
मैं नहि तजौ कदापि स्वल्पज्ञानी शुभध्यानी;
अधिक अर्थको कहूं यथाविधि बैठि झरोकै,
जालांतर धरि अक्ष भूमिधरकों जु विलोकै.
सकल जगतको देखत अर सबके तुम ज्ञायक,
तुमकों देखत नहिं नहिं जानत सुखदायक;
हौ किसका तुम नाथ और कितनाक बखाने,
तातैं थुति नहिं बनै असक्ती भये सयाने.
बालकवत निज दोष थकी इहलोक दुखी अति,
रोगरहित तुम कियो कृपाकरि देव भुवनपति,
हित अनहितकी समझि मांहि हैं मंदमती हम,
सब प्राणिनके हेत नाथ तुम बालवैद सम.
दाता हरता नाहिं भानु सबको बहकावत,
आजकाल के छलकरि नितप्रति दिवस गुमावत,
हे अच्युत जो भक्त नमैं तुम चरन-कमलकों,
छिनक एकमें आप देत मनवांछित फलकों.