Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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स्तवनमाळा ][ ६९
भवसमुद्रके मांहि देव दोनोंके साखी,
नाविक नाव समान आप वाणी मैं भाखी. १२
सुखकों तो दुख कहै गुणनिकूं दोष विचारै,
धर्म करनके हेत पाप हिरद बिच धारै;
तेल निकासन काज धूलिकों पेलै घानी,
तेरे मतसों बाह्य इसे जे जीव अज्ञानी. १३
विष मोचै ततकाल रोगकौं है ततच्छन,
मणि औषधी रसांण मंत्र जो होय सुलच्छन;
ए सब तेरे नाम सुबुद्धि यो मन धरिहैं,
भ्रमत अपरजन वृथा नहीं तुम सुमरिन करिहैं. १४
किंचित भी चितमांहिं आप कछु करो न स्वामी,
जे राख चितमांहि आपकों शुभपरिणामी;
हस्तामलवत लखैं जगतकी परिणति जेती,
तेरे चितको बाह्य तोउ जीवै सुख सेती. १५
तीनलोक तिरकाल माहिं तुम जानत सारी,
स्वामी इनकी संख्या थी तितनीहिं निहारी;
जो लोकादिक हुते अनंते साहिब मेरा,
तेऽपि झलकते आनि ज्ञानका ओर न तेरा. १६
है अगम्य तव रूप करैं सुरपति प्रभु सेवा,
ना कछु तुम उपकार हेत देवनके देवा;
भक्ति तिहारी नाथ इन्द्रके तोषित मनको,
ज्यों रवि सन्मुख छत्र करै छाया निज तनको. १७