Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७० ][ श्री जिनेन्द्र
वीतरागता कहां कहां उपदेश सुखाकर,
सो इच्छाप्रतिकूल वचन किम होय जिनेसर;
प्रतिकूली भी वचन जगतकूं प्यारे अति ही,
हम कछु जानी नाहिं तिहारी सत्यासति ही. १८
उच्चप्रकृति तुम नाथ संग किंचित न धरनतैं,
जो प्रापति तुम थकी नाहिं सो धनेसुरनतैं;
उच्चप्रकृति जल विना भूमिधर धुनी प्रकास,
जलधि नीरतैं भर्यो नदी ना एक निकासै. १९
तीन लोकके जीव करो जिनवरकी सेवा,
नियम थकी कर दंड धर्यो देवनके देवा;
प्रातिहार्य तो बनै इन्द्र के बनै न तेरे,
अथवा तेरे बनै तिहारे निमित्त परेरे. २०
तेरे सेवक नाहिं इसे जे पुरुष हीनधन,
धनवानोंकी ओर लखत वे नाहिं लखत पन;
जैसैं तमथिति किये लखत परकासथितीकूं,
तैसैं सूझत नाहिं तम-थिती मंदमतीकूं. २१
निज वृध स्वासोसास प्रगट लोचन टमकारा,
तिनकों वेदत नाहिं लोकजन मूढ विचारा;
सकल ज्ञेय ज्ञायक जु अमूरति ज्ञान सुलच्छन,
सो किमि जान्यो जाय देव तव रूप विचच्छन. २२
नाभिरायके पुत्र पिता प्रभु भरततने हैं,
कुलप्रकाशिकैं नाथ तिहारो तवन भनै हैं;