स्तवनमाळा ][ ७५
जगजन नैनकमल बनखंड, विकसावन शशि शोकविहंड;
आनंदकरन प्रभा तुम तणी, सोई अमी झरन चांदणी. ३
सब सुरेन्द्र शेखर शुभ रैन, तुम आसन तट माणक ऐन,
दोऊ दुति मिल झलकैं जोर, मानो दीपमाल दुह ओर;
यह संपति अरु यह अनचाह, कहां सर्वज्ञानी शिवनाह,
तातैं प्रभुता है जगमांहिं, सही असम है संशय नाहिं. ४
सुरपति आन अंखडित बहै, तृण ज्यों राज तज्यो तुम वहै;
जिन छिनमें जगमहिमा दली, जीत्यो मोहशत्रु महाबली;
लोकालोक अनंत अशेख, कीनो अंत ज्ञानसों देख,
प्रभुप्रभाव यह अद्भुत सबै, अवर देवमें मूल न फबै. ५
पात्रदान तिन दिन दिन दियो, तिन चिरकाल महातप कियो,
बहुविधि पूजाकारक वही, सर्व शील पाले उन सही;
और अनेक अमलगुणरास, प्रापति आय भये सब तास,
जिन तुम सरधासों कर टेक, द्रगवल्लभ देखे छिन एक. ६
त्रिजग तिलक तुम गुणगण जेह, भवभुजंगविषहरमणि तेह,
जो उरकाननमाहिं सदीव, भूषण कर पहरै भवि जीव;
सोई महागति संसार, सो श्रुतसागर पहुंचे पार,
सकल लोकमें शोभा लहै, महिमा जाग जगतमें वहै. ७
(दोहा)
सुरसमूह ढोल चमर, चंदकिरणद्युति जेम,
नवतनवधूकटाक्षतैं चपल चलैं अति एम;
छिन छिन ढलकैं स्वामि पर, सोहक ऐसो भाव,
किधौं कहत सिधि लच्छिसों, जिनपतिके ढिग आव. ८