स्तवनमाळा ][ ७७
नमावै तुम्हें शीश जो भावसेरी,
नमें तासुको लोकके जीव हेरी; सुचन्द्र० १०
तिहारो लखे रूप ज्यों दौसदेवा,
लगें भोरके चंदसे जे कुदेवा; सुचन्द्र० ११
भलीभांति जानी तिहारी सुरीति,
भई मोर जीम बडी सो प्रतीति; सुचन्द्र० १२
भयौ सौख्य जो मो कहौ नाहिं जाई,
जनौ आजही सिद्धकी ॠद्धि पाई; सुचन्द्र० १३
करूं विनती मैं दोऊ हाथ जोरी,
बडाई करूं सो सब नाथ थोरी; सुचन्द्र० १४
थके जो गणी चारिहू ज्ञान धारे,
कहा और को पार पावें विचारे; सुचन्द्र० १५
श्री ´षभजिन – स्तवन
(भुंजगप्रयात छंद)
नमों देव देवेन्द्र तुम चर्ण ध्यावं,
नमों देव इन्द्रादि सेवक कहावै;
नमों देव तुमको तुम्हीं सुखदाता,
नमों देव मेरी हरौ दुख असाता. १
तुम्हीं ब्रह्मरूपी सुब्रह्मा कहावो,
तुम्हीं विष्णु स्वामी चराचर लखावो;
तुम्हीं देव जगदीश सर्वज्ञ नामी,
तुम्हीं देव तीर्थेश नामी अकामी. २