७८ ][ श्री जिनेन्द्र
सुशंकर तुम्हीं हौ तुम्ही सुखकारी,
सुजन्मादि त्रयपुर तुम्ही हौ विदारी;
धरै ध्यान जो जीव जगके मझारी,
करै नास विधिकौ लहै ज्ञान भारी. ३
स्वयंभू तुम्ही हौ महादेव नामी,
महेश्वर तुम्ही हौ तुम्ही लोकस्वामी;
तुम्हें ध्यानमें जो लखे पुन्यवंता,
वही मुक्ति को राज विलसै अनंता. ४
तुम्हीं हो विधाता तुम्ही नंददाता,
नमै जो तुम्हैं सो सदानंद पाता;
हरौ कर्मके फंद दुःखकंद मेरे,
निजानंद दीजे नमों चर्ण तेरे. ५
महा मोहको मारि निज राज लीनौ,
महाज्ञानको धारि शिव वास कीनौ;
सुनों अर्ज मेरी रिषभदेव स्वामी,
मुझे वास निजपास दीजे सुधामी. ६
श्री चंद्रप्रभजिन – स्तवन
(चाल ‘अहो जगतगुरु’ की)
अहो चंद्र जिनदेव तुम जगनायक स्वामी,
अष्टम तीरथराज, हो तुम अंतरयामी. १
लोकालोक मझार, जड चेतन गुणधारी,
द्रव्य छहूं अनिवार पर्यय शक्ति अपारी. २