स्तवनमाळा ][ ७९
तिहिं सबको इकबार जाने ज्ञान अनंता,
ऐसो ही सुखकार दर्शन है भगवंता. ३
तीनलोक तिहुंकाल ज्ञायक देव कहावौ,
निरबाधा सुखकार तिहिं शिवथान रहावौ. ४
हे प्रभु! या जगमांहि मैं बहुते दुःख पायौ,
कहन जरूरति नाहिं तुम सबही लखि पायौ. ५
कर्म महा दुख साज याको नास करौजी,
बडे गरीबनिवाज मेरी आश भरौजी. ६
समंतभद्र गुरुदेव ध्यान तुमारो कीनो,
प्रगट भयौ जिनवीर जिनवर दर्शन कीनो. ७
जबतक जगमें वास तबतक हिरदे मेरे,
कहत जिनेश्वरदास सरन गहों मैं तेरे. ८
श्री शांतिनाथ जिन – स्तवन
(चाल – संसारे सासरियो माई दोहिलो)
शांति करम वसु हानिके, सिद्ध भये शिव जाय;
शांति करो सब लोकमें, अरज यहै सुखदाया
शांति करो जगशांतिजी. १
धन्य नयरि हथनापुरी, धन्य पिता विश्वसेन;
धन्य उदर अयरा सति, शांति भये सुखदेय. शांति० २
भादव सप्तमि स्यामही, गर्भकल्याणक ठानि,
रतन धनद वरषाईयो, षट नव मास महान. शांति० ३