Shri Jinendra Stavan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८२ ][ श्री जिनेन्द्र
तेनी वाणीथी मुक्त थईशुं,
आत्मसुखथी भरपूर रहीशुं,
धर्मध्यानथी तरबोळ रहीशुं;
हुं तनथी, हुं मनथी, हुं तनमनधनथी भक्ति करूं,
करो प्रभुजी म्हेर थया लीला ल्हेर ल्हेर.
कनकमयी थाळमां अर्घ लईने;
कहानप्रभु पूजने जईशुं,
जीवन धन्य बनावीशुं;
हुं तनथी, हुं मनथी, तनमनधनथी भक्ति करूं,
करो प्रभुजी म्हेर थया लीला ल्हेर ल्हेर.
श्री स्तवन
आवे छे हैडामां मुनिराजनी याद जो,
बाह्य अभ्यंतरथी निर्ग्रंथ लिंग जो,
वंदन जेने लाखो क्रोडो.
छये खंडनी विभूतिने ठोकरे मारी, (२)
जनम्या प्रमाणे रूप धर्युं, थया वन विहारी.
जेना स्मरणमात्रथी हृदये आनंद जो,
वंदन जेने लाखो क्रोडो.
ज्ञानमां सदा प्रगतिशील छे जेनुं तन मन,
मुखेथी कथे जे जैन मार्ग अणमूल छे हरेक वचन,
नाचती आवे इन्द्राणी तोये नहि डगन,
वंदन जेने लाखो क्रोडो.