८२ ][ श्री जिनेन्द्र
तेनी वाणीथी मुक्त थईशुं,
आत्मसुखथी भरपूर रहीशुं,
धर्मध्यानथी तरबोळ रहीशुं;
हुं तनथी, हुं मनथी, हुं तनमनधनथी भक्ति करूं,
करो प्रभुजी म्हेर थया लीला ल्हेर ल्हेर. ३
कनकमयी थाळमां अर्घ लईने;
कहानप्रभु पूजने जईशुं,
जीवन धन्य बनावीशुं;
हुं तनथी, हुं मनथी, तनमनधनथी भक्ति करूं,
करो प्रभुजी म्हेर थया लीला ल्हेर ल्हेर. ४
श्री स्तवन
आवे छे हैडामां मुनिराजनी याद जो,
बाह्य अभ्यंतरथी निर्ग्रंथ लिंग जो,
वंदन जेने लाखो क्रोडो. १
छये खंडनी विभूतिने ठोकरे मारी, (२)
जनम्या प्रमाणे रूप धर्युं, थया वन विहारी.
जेना स्मरणमात्रथी हृदये आनंद जो,
वंदन जेने लाखो क्रोडो. २
ज्ञानमां सदा प्रगतिशील छे जेनुं तन मन,
मुखेथी कथे जे जैन मार्ग अणमूल छे हरेक वचन,
नाचती आवे इन्द्राणी तोये नहि डगन,
वंदन जेने लाखो क्रोडो. ३