स्तवनमाळा ][ ८३
उष्ण तापे टोपे परे, शीतळ समीरे वृक्ष नीचे,
मेघराज आगमन काळे विशाळ वृक्षनी बखोल मांहे,
उपसर्गो पडता छतां ए ज्ञानमां केवळ ज्ञेय जो,
वंदन जेने लाखो क्रोडो. ४
कोई क्षणे शास्त्र लखे, कोई क्षणे भवी शुद्ध स्वरूपे ठरे,
कोई क्षणे अभिग्रह धरे, कोई क्षणे भवी जीव संबोधे,
अहो! पुराण पुरुष हृदये बिराजजो,
वंदन जेने लाखो क्रोडो. ५
आ विश्व विषे कमलवत् भासे मुनीश्वर पदवी धारी,
अहोहो! मुनिवरा तारी वात सहुथी न्यारी,
धन्य धन्य तारा मात ने तात जो,
वंदन जेने लाखो क्रोडो. ६
श्री – स्तवन
जैन डंका वाग्या ने भव्यो जाग्या शासनमां;
रणकार ए सूण्या ने मनने गम्या आनंदमां.
वगाडनार कोण छे शूरो ने गुणमां पूरो शासनमां;
जोयुं जगतमां फरीने नक्की शोधी शासनमां.
दिव्य पुरुष ए दीठा ने कहान नामे ओळख्या शासनमां;
चित्तमां चमत्कार चीतर्या ने वाणी अमृत पीरस्यां
शासनमां.
वीतरागी अरिहंतने ओळखाव्या ने जयकार फेलाव्या
शासनमां.