Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नाथ निरंजन प्यारा, प्रभु! दुःख वारो मारां;
शिवसुखना देनारा, मोहन गा.....री.....रे. मूरति०
दयाळु दिलधारी, अज्ञानदुःखहारी;
दास करो भवपारी, मोहन गा.....री....रे. मूरति०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(धनभाग्य अमारे आंगण आव्याए देशी)
धनभाग्य अमारे मंदिर आव्या, सीमंधर भगवान;
वधावुं आज अर्घ्यनो थाळ भरी भाव साथ....(टेक)
चंद्र सूरज सम रूपे जगपति, शांतिना करनार;
धर्मदाता तारुं दरिसन प्यारुं, नरनारी सुखकार....वधावुं०
जैन धरमनो जय वरताव्यो, धन्य! तुज अवतार;
शांतिदाता तारुं शासन लागे, भविजनने हितकार....वधावुं०
ज्ञान-आनंद निज स्वरूपे रमता, आतमगुण भंडार;
शर्मदाता तुं भविजनत्राता, मनवांछित दातार.....वधावुं०
स्याद्वाद सम धर्मप्ररूपक, ज्ञान दर्शन धरनार;
श्रेयदाता तुं जगजनत्राता, भवदुःखने हरनार....वधावुं०
रागद्वेष सम को नहि शत्रु, हणी थया अरिहंत;
सौम्यतामां पुनमशशिसम, भक्त पूजे भगवंत......वधावुं०

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श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवन
(वीर कुंवरनी वातडी केने कहीएए देशी)
पार्श्वजिणंदने प्रीतथी नित्य वंदुं,
हांरे नित्य वंदुं रे नित्य वंदुं,
हांरे कीधां पाप ते सर्व निकंदुं,
हांरे करी दरिसण आज.....पा०
बनारसी नगरी अति मनोहारी,
हांरे सहु जनने अति सुखकारी;
हांरे अश्वसेनराय घर नारी,
हांरे वामादेवीना नंद....पा०
तस कुंखे प्रभु पार्श्वजी अवतरिया,
हांरे त्रण ज्ञाने करीने भरिया;
हांरे पूर्ण गुण तणा छे दरिया,
हांरे जन्म्या शुभ दिन. पा०
जन्म-ओछव हरि मेरुए जई करता,
हांरे इंद्र सहस्र नेत्रने धरता;
हांरे नीरे निरमळ कळशा भरता,
हांरे करता अभिषेक. पा०
संयम वेळा लोकांतिक देवा आवे,
हांरे प्रभु वैराग्य भावना भावे;
हांरे इंद्र दीक्षा-ओछव मलावे,
हांरे करे सहु गुणग्राम. पा०

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चारित्र रत्नथी नाथजी अति दीपे,
हांरे प्रभु अप्रमत्त स्वरूपमां झूले;
हांरे मनःपर्ययज्ञान त्यां ऊपजे,
हांरे मांडी श्रेणी क्षपक. पा०
निर्मळ केवळज्ञानने प्रभु पामी,
हांरे थया मुक्ति रमणीना स्वामी;
हांरे तुज सेवक नाचे शिरनामी,
हांरे तारो दासने नाथ! पा०
श्री वीरजिनस्तवन
आज भाव साथ, हुं वंदुं जोडी हाथ;
विश्व उपकारी श्री वीरजिननाथ. (टेक)
जो जो प्रभुनी प्रतिमा केवी, शांतिमय देखाय,
निरखे भवनां पातकडां, ध्रूजीने चाल्यां जाय....आज० १
प्रभुने जोतां मनडुं मारुं, अति घणुं फुलाय;
सफळ थयो प्रभु! दिवस आजनो, धन धन तुज महिमाय....२
कर्मकलंक निवारक जिनजी, सेवकने तुं तार;
अशरणशरण! जगजनतारण! थयो सफळ मुज अवतार.....३
जिनवरदेवना दर्शन कर्याथी, समकितनो लाभ थाय;
जिन स्वरूपे लीन थवाथी, मरण समाधि थाय....आज० ४
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शासननायक! शिवसुखदायक! तुं प्रभु अंतरजामी;
वीरजिणंदना चरणकमळमां, दास नमे शिरनामी. आज० ५
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(रागसारंग, देशीमाता मरुदेवीना नंद.......)
तमे तो भले बिराजोजी,
सुवर्णपुरमां सीमंधर, जिनजी भले बिराजोजी,
तमे तो भले बिराजोजी, तमे तो भले बिराजोजी,
सुवर्णपुरमां सीमंधर, जिनजी भले बिराजोजी. (टेक)
मंगलआगर करुणासागर, सागर जेम गंभीर;
जगतना आधार दीनदयाळु, उतारो भवजलतीर....तमे०
नाथ निरंजन भवभयभंजन, शरणागत-आधार;
तरण-तारण बिरुद धरावो, वंदुं हुं वारंवार...तमे०
निरविकारी शांतमनोहर मुद्रा निरखी आज;
एहवी अन्य देवनी जगमां, दीठी नहि जिनराज!.....तमे०
पुष्कलावती विजय वसिया, पिताश्री श्रेयांसपूज्य;
आनंददायक सत्य माताना, समरूं अहोनिश तुज. तमे०
पूरण शशीसम मुखमनोहर, निरखी हर्ष अपार;
केवलज्ञान अनंत गुणाकर, प्रगट्या पूर्णानंद....तमे०

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संवत ओगणीश सत्ताणुं साले, फागण सुदि बीज;
सीमंधरजिनना दरिसन करीने, सेवक थाये लीन. तमे०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(मथुरामां खेल खेलीए देशीमां)
विदेही जिणंद बलिहारी, श्रीकार आनंदकारी;
आनंदकारी प्रभो आनंदकारी, विदेही जिणंद० (टेक)
जगजनमंडन पापनिकंदन (२)
प्राण जीवन जाउं वारी, हो नाथ! जग उपकारी..विदेही० १
परम कृपानिधि परम दयाळु (२)
जगदावानळवारि, हो नाथ! जगहितकारी....विदेही० २
सुख करनारा दुःख हरनारा (२)
सेवुं जिणंद मनोहारी, हो नाथ! शिवसुखकारी....विदेही० ३
निज गुणधारी कर्मो हठावी (२)
धर्मधुरंधर धोरी हो नाथ! दिलदुःखवारि....विदेही० ४
त्रिविधत्रिविधे वंदन करुं छुं (२)
तुज सेवक सुखकारी, हो नाथ! भवदुःखहारी....विदेही० ५
श्री जिनेन्द्रस्तवन
(प्रियतम प्रभु नमीए आपनेए देशीमां)
जय जिनवर नमीए आ....पने
जपीए पावन तुम जा....पने....जय० (टेक)

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आतम-रामी शिवपद-गामी (२)
हरता भव भव पा.....पने जय०
सुख करनारा भविजन प्यारा (२)
जगपति त्रिभुवन ना...थने जय०
अंतरजामी निरमळनामी (२)
जगतगुरु जग ना...थने जय०
कुमत-हरता सुमत-दाता (२)
भवतारक भगवं.....तने जय०
उपशमरसधर मूरति सुंदर (२)
सेवक पूजे अरिहं....तने जय०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(महावीर तमारी मनोहर मूरतिए देशी)
श्री सीमंधरप्रभुनी मनहर मूरति,
देखी मन हरखाय (२) टेक
पूर्ण रवि सम कांति सोहे, देखी भविजननां मन मोहे;
लक्ष्मीथी उत्तम सोहेरे, हुं लागुं लळी लळी पाय. श्री० १
चंद्र निर्मळ कीरति तारी, जगत-जीवना छो उपकारी;
सर्व प्राणी हितकारी रे, हुं लागुं लळी लळी पाय. श्री० २

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जीवन उज्ज्वल करता, शिवनारी वेगे वरता,
निर्मळ गुणोने धरतारे; हुं लागुं लळी लळी पाय श्री० ३
वंछित पेटी आत्म-खजाने, म्हेर करी आपो सेवकने;
दर्शनीय प्रभु तमनेरे, हुं लागुं लळी लळी पाय. श्री० ४
नाथ निरंजन मुजने मळिया, मारा भवनां पातको टळियां;
सेवकना उद्धार करियारे; हुं लागुं लळी लळी पाय. श्री० ५
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(ललित छंदमां)
सीमंधरनाथजी! मोह टाळजो,
सुखद एहवो धर्म आपजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं.
जगत-नाथजी! दर्श आपजो;
सुखद एहवी भक्ति आपजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं.
जगत-तातजी! कष्ट कापजो,
सुखद एहवुं स्वरूप आपजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं.

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परम नाथजी! दुःख कापजो,
अचल एहवुं शर्म आपजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं.
परम देवरे! व्याधि कापजो,
अचल एहवी शांति आपजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं.
अचल देवरे! शत्रु वारजो,
शरण ताहरुं सर्वदा हजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं.
विपत्ति दासनी सर्व कापजो,
चरण पद्मनी सेवना हजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं.
श्री जिनवाणीस्तवन
(सहु भावे नमो गुरुराजने रेए देशी)
धन्य दिव्य वाणी ॐकारने रे,
जेणे प्रगट कर्यो आत्मदेव;
जिनवाणी जयवंत त्रणलोकमां रे. १

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स्याद्वाद-अंकित शास्त्रो महा रे,
समयसार प्रवचनसार....जिनवाणी० २
सर्वांगेथी दिव्यध्वनि खीरती रे,
जेमां आशय अनंत समाय...जिनवाणी० ३
सुविमल वाणी वीतरागनी रे,
दर्शावे शुद्धात्म सार....जिनवाणी० ४
शुद्धामृत पूरित सरिता वहे रे,
वहे पूर अनादिअनंत.....जिनवाणी० ५
मात रत्नत्रयी दातार छो रे,
तुं छो भवसागरनी नाव....जिनवाणी० ६
शिवमार्गप्रकाश भारती रे,
करे केवळज्ञान विकास....जिनवाणी० ७
खोल्यां रहस्य जिनवाणी मातनां रे,
गुरु कहान वरतावे जयकार.....जिनवाणी० ८
श्री जिनवाणीस्तवन
(ज्योति भक्तिनी जगावए देशी)
जय जय मंगलकारी महान, प्रातः प्रणमुं हे जगमात!
तुं परम ज्ञान सुझावे, भवतापोनां दुःख बुझावे,
सुरनर पूजित तारां पाद.......प्रातः०

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तुं सकल विरोध मिटावे, तुं वस्तु-स्वरूप प्रकाशे,
स्याद्वाद धरे निशान....प्रातः०
तुं शुद्धामृत दातारी, संतोना हृदये प्यारी,
रमती अहर्निशे हे मात....प्रातः०
जिनवाणी अतिशय गर्जे, भविचित्त मयुर शुं नाचे,
सुणतां थाये सहज कल्याण....प्रातः०
तारी कथतां गंभीरताने, श्रुतकेवळी पार न पामे,
सर्वे मंगलमां शिरताज....प्रातः०
सिद्धोनुं स्थापन करती, भवि-अंतरमां तुं वसती;
तुं छो एक जग-आधार....प्रातः०
तुं अनंत चतुष्ट प्रकाशे, भव्य जीवोने उद्धारे,
तारी महिमा सुणावे कहान...प्रातः०
श्री जैनधर्मस्तवन
मेरा जैन धरम अणमोला, मेरा जैन धरम अणमोला;
इसी धरममें वीरप्रभुने, मुक्तिका मारग खोला....मेरा०
इसी धरममें कुंदकुंददेवने, शुद्धातमरस घोला....मेरा०
इसी धरममें उमास्वामीने तत्त्वारथको तोला....मेरा०
इसी धरममें अमृतदेवने, कुंदरदयको खोला......मेरा०

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इसी धरममें मानतुंगने, जेलका फाटक खोला...मेरा०
इसी धरममें अकलंकदेवने, बौद्धोंको झकझोला....मेरा०
इसी धरममें टोडरमलने, प्राण तजे विन बोला....मेरा०
इसी धरममें कहानगुरुने, अध्यातमरस घोला...मेरा०
इसी धरममें कहानगुरुने, कुंदामृतरस घोला....मेरा०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(प्रभुजी तुमने तेज दिखायाए राग)
सीमंधरजिन! हुं शरण तमारे,
तुम विण भवदधि कोण उतारे..(टेक)
भूल्यो भरते केम थाउं किनारे;
कष्ट विकट आ कोण निवारे;
तुं सुखकारे इष्ट हमारे,
जीवननैया तार हमारी, जीवन० सी०
शांतस्वरूपी आनंदकारे,
तुज विण देव नहि छे मारे;
तुं सुखकारे इष्ट हमारे;
जीवननैया तार हमारी; जीवन० सी०
करुणासागर! आत्म-आधारे,
सेवकनां तुम दुःख निवारे;

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तुं सुखकारे इष्ट हमारे,
जीवननैया तार हमारी० सी०
सार करो नाथ! म्हारी व्हारे,
पापतिमिरने हरजो ब्हारे;
तुं सुखकारे इष्ट हमारे,
जीवननैया तार हमारी० सी०
काष्ट-नाव सम पार उतारे,
बाळक नमे तुम वार हजारे;
तुं सुखकारे इष्ट हमारे,
जीवननैया तार हमारी० सी०
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(आवेल आशा भर्याए देशी)
प्रभु आशा धरीने अमे आवियारे,
अमने उतारो भवोदधि पार रे,
जिनराज लगन लागी रे. (टेक)
सीमंधरजिन चंदलोरे, छे महाविदेहनो देव रे; जि०
राग-द्वेष-मल्ल जीतियारे, दीठे थाय छे परमानंद रे; जि०
प्रभुजी साथे प्रीत बांधीरे, पुण्य फळ्या अपार रे; जि०
मिथ्यामति जोर टाळियोरे, मळ्या मनचिंतित दातार रे; जि०
मनमंदिर व्हेला आवजोरे, आप साथे कीधो छे खरो स्नेह रे; जि०
नाम तमारुं नित्य सांभरेरे, वळी टळे छे नामथी संदेह रे; जि०

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चंद्र समान शीतळ शोभतारे, जेम पूनमचंद्र सुखकार रे; जि०
शासन लाग्युं छे मने मीठडुं रे, दास चरणे नमे छे वारंवार रे; जि०
सहकार आगे शी मागणी रे, जिनजी मोंघे काळे मळ्या आज रे; जि०
पाका वोळावा मने भेटिया रे, जिनभक्तना सिध्यां काज रे, जि०
श्री जिनेंद्रस्तवन
(काली कमली वाले, तुमको लाखों सलामए देशी)
आतम-संपद-रामी, जिनने करुं हुं प्रणाम;
स्वामीने करुं छुं प्रणाम प्रभुने करुं हुं प्रणाम.
ज्ञान दर्शन ने चारित्रधारी (२)
मोहराज पर विजयकारी (२)
भेट्या आतमराम, जिनने० (२) आतम० १
आत्म-साधना पूरणकारी (२)
मुज सम जीवनां दुरितहारी (२)
भेट्या आतमराम जिनने० आतम० २
कामधेनु कामकुंभ सरिखा (२)
कल्पतरु चिंतामणि सरिखा (२)
भेट्या आतमराम जिनने० आतम० ३

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त्रिपदीनी ज देशना देता (२)
छकाय जीवना अभयदाता (२)
भेट्या आतमराम जिनने० आतम० ४
शांति-विधाता समता-सागर (२)
परमपुरुष प्रधान गुणाकर (२)
भेट्या आतमराम जिनने० (२) आतम० ५
प्रेमे करुं देव-गुरुनी सेवा (२)
पामी सेवाना मीठा मेवा (२)
सेवक वरे शिवधाम,
जिनने करुं हुं प्रणाम. (२) आतम० ६
श्री चोवीस जिनेन्द्रस्तवन
(चंदनहारी देशीमां)
मने व्हाला जिनेश्वर लागे, प्रभुनुं ध्यान ध्यावुं रे;
हुं तो नमन करी शुभ भावे, जिणंद गुण गावुं रे (टेक)
(साखी)
ज्ञान-दर्श-चारित्रथी, करी चार कर्मनो अंत;
परमातम पद पामीने, प्रभु अनंत गुणे शोभंतरे......
जिणंद गुण गावुं रे; हुं तो नमन करी शुभ भावे, जिणंद०

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(साखी)
जिनगुणरामी ॠषभदेव, अजितनाथ भगवंत;
जगदीश्वर संभवनाथने, नमुं अभिनंदन बलवंतरे. जि०
(साखी)
सुमतिदाता सुमतिजिन, करुं पद्मप्रभ सेव;
सुखकर सुपार्श्वनाथने, नमुं चंद्रप्रभ जिनदेवरे. जि०
(साखी)
मनविसरामी सुविधिजिन, शीतलकर शीतलनाथ;
घननामी श्रेयांसनाथने, नमुं वासुपूज्य ब्रह्मचारी रे. जि०
(साखी)
अंतरजामी विमलजिन, भवजलतारुं अनंत;
धर्मदायक धर्मजिनने, नमुं शांतिकर शांति भदंतरे. जि०
(साखी)
आतमरामी कुंथुनाथ, महिमावंत अरनाथ;
ब्रह्मचारी मल्लिनाथने, नमुं मुनिसुव्रत मुनिनाथरे. जि०
(साखी)
आत्मगुणी नमिनाथ-जिन, ब्रह्मचारी नेमि-जिणंद;
ब्रह्मचारी पार्श्वनाथने, नमुं वीर-जिणंद दिणंदरे. जि०
(साखी)
पूर्णानंदी अरिहंतने, नमुं परम उल्लास;
प्रभु शरणागत दासना, झट तारो प्रभु मने खासरे. जि०

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श्री सीमंधर जिनस्तवन
(रागधनाश्री, देशीअखियनमें अविकारा)
मूरती मोहनगारी सीमंधरजिन, मूरती मोहनगारी. (टेक)
अनंत ज्ञान ने दर्शने भरिया, लागुं हुं लळी लळी पाय,
अनंत चारित्रगुणना भंडार, लागुं हुं लळी लळी पाय...सी०
अनंतबली ने आतमरामी, लागुं हुं लळी लळी पाय;
जगत-जीवना छो उपकारी, लागुं हुं लळी लळी पाय...सी०
रूप मनोहर, वंदित सुरनर, लागुं हुं लळी लळी पाय;
सकळ दोषथी रहित जिनवर, लागुं हुं लळी लळी पाय...सी०
सर्व गुणे संपन्न वीतराग लागुं हुं लळी लळी पाय;
शुद्ध धर्मनो प्रचार करनार, लागुं लळी लळी पाय....सी०
शशि शीतळ सम शांतिविधाता, लागुं लळी लळी पाय;
तुज सेवकनां दुःखो हरनारा, लागुं लळी लळी पाय.....सी०
श्री पद्मनाथ जिनस्तवन
(रागमेरी अरजी उपर)
शांत मूर्ति पद्म प्रभु नमन करुं,
देव कृपानिधि मुज सुख करुं....(टेक)
तुंही राजा तुंही पिता, तुंही तारणहार छे;
तुंही भ्राता तुंही पालक, तुंही रक्षणहार छे;
तुंही नाम रटण दिनरात करुं.....शांत० १

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तुंही ब्रह्मा तुंही विष्णु, तुंही मनविसरामी छे;
तुंही शंकर तुंही तारक, तुंही आतमरामी छे;
तुंही नाम रटण दिन रात करुं.....शांत० २
तुंही ज्ञानी तुंही दानी, तुंही गुण-भंडारी छे;
तुंही नाथ तुंही विभु, तुंही समताधारी छे; तुं० शां० ३
तुंही वीर तुंही संत, तुंही चिदानंद छे;
तुंही सुमति तुंही जिनवर, तुंही सहजानंद छे; तुं० शां० ४
तुंही अजर तुंही अमर, तुंही जगदानंद छे;
तुंही जग-तारणहारो; तुंही पूरणानंद छे.
तुंही नाम रटण दिनरात करुं.....शांत० ५
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(रागहरी मोहे)
वंदन करुं जिनराज भावथी हुं,
वंदन करुं जिनराज. वंदन० (टेक)
श्री वीतरागदेव सीमंधरजिनजी (२)
निरखतां हर्ष अपार; भावथी हुं वंदन० १
आतम-बळथी मोहना विजयी (२)
ज्ञानादि गुणना भंडार; भावथी हुं वंदन० २
चंपक-माळ सम आनंदकारी (२)
सर्व प्राणी सुखकार; भावथी हुं वंदन० ३

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जीवन छे अद्भुत तमारुं (२)
भाव अमर करनार; भावथी हुं वंदन० ४
नायक शासन तीरथ-स्थापक (२)
थया भवि तारणहार; भावथी हुं वंदन० ५
श्री शांतिनाथस्तवन
(एक सुख पाया मैंने, अंमाके राजमेंए देशी)
शांति प्रभुजीरे, विनति मोरी मानना; (टेक)
आज मंगल पाया मैंने, प्रभुके दरबारमें (२);
शांतिनाथ सुखदायीरे, मंगल मेरा करना; शांति प्रभु० १
आज सरन पाया मैंने, प्रभुके दरबारमें (२)
तरन-तारन बिरुदधारीरे, कल्याण मेरा करना; शांति० २
आज सुख पाया मैंने, प्रभुके दरबारमें (२)
जगतारक प्रभु वडोरे, सेवक सुखी करना; शांति० ३
आज शांति पाई मैंने, प्रभुके दरबारमें (२);
जिनराज निजानंदीरे, अनाथ मुझे तारना; शांति० ४
आज भक्ति पाई मैंने, प्रभुके दरबारमें (२);
अरिहंत देवाधिदेवरे, दुःखोंको मेरे काटना; शांति० ५
आज सेवा पाई मैंने, प्रभुके दरबारमें (२);
वीतराग लोकनाथरे, भवोंका फेरा टालना; शांति० ६

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आज दर्शन पाया मैंने, प्रभुके दरबारमें (२);
पूरण शशिसम प्रभु रे, सेवक शांति करना. शांति० ७
श्री सीमंधर जिनस्तवन
(काली कमलीवालेए देशी)
प्यारा सीमंधरदेव, जिनने वंदुं वार हजार;
प्रभुने वंदुं वार हजार. (टेक)
चंद्र-सूरज-सम कांति सोहे, भविजननां मनडाने मोहे,
दर्शन आनंदकार, जिनने वंदुं वार हजार. (२) प्या०
भव्यजनोना भव हरनारा, त्रण भुवनमां सुख करनारा;
भवजल-तारणहार, जिनने वंदुं वार हजार. (२) प्या०
मंगल मूरतिनी बलिहारी, हर्षथी वंदे सुरनरनारी,
वाणी आनंदकार, जिनने वंदुं वार हजार. (२) प्या०
शासननायक तुं जगदीवो, जगजनजीवन! चिरंजीवो;
आतमने हितकार, जिनने वंदुं वार हजार. (२) प्या०
आप चरणनी सेवा मागुं, दीनबंधु! तुम चरणे लागुं;
भक्त करो उद्धार, जिनने वंदुं वार हजार. (२) प्या०
श्री मुनिसुव्रत जिनस्तवन
(मन मायाना करनारा रेए देशी)
मुनिसुव्रत जिनरायारे, नमुं शांतिकारक सुखदाया;
भवितारक बिरुद धरायारे; नमुं शांति. (टेक)
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जन्म जरा ने मरणनिवारक, आतमज्ञाने भरियारे,
बलिहारी प्रभु तमारा नामने, वारी जाउं गुण-दरियारे; नमुं०
वस्तुतत्त्वनो प्रकाश करता, सुरनर पूजित पाया;
कर्मगजेंद्रनी घटा निवारी, केसरीसिंह जिनरायारे; नमुं०
सर्वगुणोदधि चन्द्रमा जिनजी, देवोमां देव कहाया;
आतमरंगमां भंग न पाड्यो, म्हाल्या अचल सुखरायारे, नमुं०
वही गया काळचक्र अनंता, भेट्यां आ भव महारायां;
म्हेर करो प्रभु! दीन सेवक पर, चरणे प्रेम लगायारे; नमुं०
निश्चय व्यवहारे प्रभुने पूजतां, पातक जाय दुःखदाया;
अरिहंतादिनी आराधनाथी, दास वरे शिवरायारे; नमुं०
श्री नेमिनाथ जिनस्तवन
(रागवासुपूज्य विलासी चंपाना वासी)
श्री नेमिजिनेश्वर, छो जगदीश्वर, वंदीए वारंवार;
जगतना आधार धर्मना दातार वंदीए वारंवार. (टेक)
बाल ब्रह्मचारी नेमिजिनेश्वर, निरखत नयनानंद;
लक्षण-लक्षित निज आतमथी साध्यो? पूर्णानंदरे, श्री०
चंदन समान शांति करनारा, हर्ता कर्मनां वृंद;
द्रष्टि सुधासम वदन मनोहर, सेवे सुरनर वृंदरे. श्री०
परम कृपाळु परम दयाळु, स्वभावे परमानंद;
परम पुरुष परम प्रधान, केवल ज्ञानानंदरे. श्री०