पावहि भविजन पार, मात गंगा सुखधारहिं,
नगर सुसीमा जन्म आय, मिथ्यामति टारहिं,
प्रभु देहिं धरम उपदेश नित सदा बैन अमृत झरहिं;
तिन चरणकमल वंदन करत, पापपुंज पंकति हरहिं. १९
(२०) श्री अजितवीर्य जिन स्तुति
(छप्पय)
वर्तमान जिनदेव पद्म, लच्छन तिन छाजै,
अजितवीर्य अरहंत, जगतमें आप विराजै;
पद्मासन भगवंत ध्यान इक निश्चय धारहि,
आवहि सुरनरवृंद, तिन्हैं भवसागर तारहि,
नगर अजोध्या जन्म जिन, मात कननिका उरधरन;
तस चरनकमल वंदत भविक जै जै जिन आनंदकरन. २०
(दोहा)
वर्तमान वीसी करी, जिनवर वंदन काज;
जे नर पढैं विवेकसों, ते पावहिं शिवराज. २१
वर्तमान – वीस – तीर्थंकर – समुच्चय – स्तुति
(कवित)
सीमंधर जुगमंद्र बाहु ओ सुबाहु,
संजात स्वयंप्रभु नांव तिहुं पन ध्याईये;
ॠषभानन अनंतवीर्य विशाल सूरप्रभ,
वज्रधरनाथके चरण चित्त लाईये.
स्तवन मंजरी ][ ९३